Uttar Pradesh News | हाल ही में उजागर हुए देश के सबसे बड़े बैंक घोटाले ‘एबीजी शिपयार्ड स्कैम‘ (ABG Shipyard Scam )को लेकर सीबीआई ने दावा किया है कि यह 2005 से 2012 के बीच हुआ। इस घोटाले को लेकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर ‘लूटो और भागो’ की नीति अपनाने का ताना कसा था। लेकिन अब कांग्रेस नीत पूर्ववर्ती यूपीए सरकार घेरे में आ गई है।
सीबीआई के दावे को मानें तो अब यह कांग्रेस के लिए ‘उल्टे बांस बरेली को चले’ जैसा लग रहा है। देश में 2005 से 2012 के बीच कांग्रेस नीत संप्रग सरकार थी और सीबीआई का कहना है कि कंपनी को अधिकांश बैंक लोन का भुगतान इसी अवधि के दौरान हुआ है। कंपनी के कर्ज खाते को फंसा कर्ज यानी एनपीए भी 30 नवंबर 2013 को घोषित किया गया था। देश में मई 2014 के पहले तक यूपीए सरकार थी।
28 बैंकों से लिया कर्ज, आईसीआईसीआई बैंक को सबसे बड़ा झटका
जहाजों के कारोबार से जुड़ी इस कंपनी पर आरोप है कि उसने ICICI Bank के नेतृत्व वाले 28 बैंकों के कंसोर्टियम को 22,842 करोड़ रुपये का चूना लगाया। इसमें एबीजी शिपयार्ड ने आईसीआईसीआई बैंक के साथ सबसे बड़ी यानी 7,089 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की। 22,842 करोड़ के कुल घोटाले में आईडीबीआई बैंक के 3639 करोड़, स्टेट बैंक आफ इंडिया के 2925 करोड़, बैंक आफ बड़ौदा के 1614 करोड़ और पंजाब नेशनल बैंक के 1244 करोड़ रुपये शामिल हैं।
शिपिंग फर्म के निदेशकों में ऋषि अग्रवाल, संथानम मुथुस्वामी और अश्विनी कुमार शामिल हैं। यह मामला भारत का सबसे बड़ा बैंक कर्ज घोटाला बताया जा रहा है। एबीजी शिपयार्ड ने भारतीय स्टेट बैंक, केंद्रीय जांच ब्यूरो, या सीबीआई सहित 28 बैंकों के बकाया 22,842 करोड़ रुपये के ऋण पर चूक की।
सीबीआई ने कहा कि राज्य सरकारों द्वारा “सामान्य सहमति” वापस लेने से बैंक धोखाधड़ी के मामले दर्ज करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है। सीबीआई ने बयान में कहा, “कुछ 100 उच्च-मूल्य वाले बैंक धोखाधड़ी के मामले हैं जो विशिष्ट सहमति के गैर-अनुरोध के कारण दर्ज नहीं किए जा सके … राज्य सरकारों द्वारा जहां सामान्य सहमति वापस ले ली गई है।”